बेटी एक वरदान......
बेटी एक वरदानबेटी सच में एक वरदान है। वो कई रिश्ते बखूबी निभाती है।वो कभी बेटी होती है, कभी बहु, कभी बहन तो कभी भाबी, कभी पत्नी और कभी सखीजिस घर में बेटी हो, वहाँ हमेशा चहल पहल रहती है ।एक बेटी ही अपने थकेहारे पिता का हालचाल पूछ कर उसे पानी पिलाती है, या कभी अपनी माँ का काम में हाथ बटाती है। बेटी ही अपने भाई के साथ लड़ती है और बेटी ही उसके साथ खेलती है।बड़ी होने पर बेटियाँ एक नहीं, बल्कि दो घरों को जोड़ती है । बेटियाँ सिर्फ पारिवारिक जिम्मेदारियां हीनहींनिभातीहै, पर अलग अलग क्षेत्रों में अव्वल भी बन सकती है । आज कल हम सभी क्षेत्रों में लड़कियों को आगे बढ़ते देख सकते है। बेटियाँ किसी भी घर की आन और शान होती है और उसकी रौनक बढाती है। पिता :- कन्यादान नहीं करूंगा जाओ , मैं नहीं मानता इसे , क्योंकि मेरी बेटी कोई चीज़ नहीं ,जिसको दान में दे दूँ ; मैं बांधता हूँ बेटी तुम्हें एक पवित्र बंधन में , पति के साथ मिलकर निभाना तुम , मैं तुम्हें अलविदा नहीं कह रहा ,आज से तुम्हारे दो घर ,जब जी चाहे आना तुम , जहाँ जा रही हो ,खूब प्यार बरसाना तुम , सब को अपना बनाना तुम ,पर कभी भी न मर मर के जीना ,न जी जी के